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विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 04)

शुभ और उसके साथी गार्ड्स अब दक्षिण-पूर्व की तरफ खोज में निकल गए थे। दूर से खूंखार जानवरों के स्वर गूंज रहे थे। लताये वृक्षो से इस प्रकार लिपटी हुई थी मानो उन्हें इस भयानक आवाज से डर लग रहा हो। सभी एक निश्चित दूरी पर फैलकर अमन और उसके साथियों को ढूंढ रहे थे। तकरीबन एक से डेढ़ घंटे तक ढूंढने के बाद उनके हाथ हताशा के अलावा कुछ नही लगा।

"सर! उनके होने का कोई निशान नही मिल रहे।" एक गॉर्ड बोलता है।

"हाँ मैं भी देख रहा हूँ करण!" शुभ परेशान स्वर में बोला। अचानक हल्की सी हवा चली और एक कागज का पन्ना उसके मुँह पर आ लगा।

"अरे ये क्या है?" शुभ चकित होता हुआ पन्ने को मुँह से हटाता है। " ये तो वही नक्सा है जो अमन के पास था।"

"लगता है हमें एक क्लू मिल गया सर! हमें इस तरफ आगे बढ़ना चाहिए।" खान बोलता है।

बढ़ते-बढ़ते वे जंगल में काफी अंदर तक चले जाते हैं उन्हें दूसरा द्वीप नजर आता है। वहां जाने का रास्ता पेड़ो के पुल से होकर गया था, सब बारी बारी आगे बढ़कर उस द्वीप में जाते हैं। सभी एक-एक कदम फूंक-फूंककर आगे बढ़ते हैं, उन्हें इस जगह पर सबकुछ अजीब प्रतीत होता है। दलदली होंने के बावजूद इसमें पैर नही धँस रहे थे। इन सभी से कुछ ही दूर एक पेड़ के पीछे काला साया नजर आया।

"सर यहां कोई भूत वूत तो नही रहता?" एक गॉर्ड माहौल की संगिनीयत देखते हुए मजाक करता हुआ हँसकर बोलता है।

"अरे यार अजय तू जान ले ले हमारी, तुझे पता है न भूतो से मेरी कितनी फटती है।" करण उसे चुप कराते हुए घबराहट में बोला, सबकी हँसी छूट गयी। अब सभी एक साथ चल रहे थे, दलदल पर कुछ घण्टे पहले के कदमों निशान मिल रहे थे।

एक हल्के सरसराहट की आवाज हुई यह ध्वनि पत्तियों के सरसराने से अलग थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी भारी चीज को घास पर तेजी से खींचा गया हो।

"रितेश कहाँ गया?" शुभ हैरान-परेशान स्वर में चिल्लाता है।

"रितेश-रितेश।" सभी चारो तरफ मुँह करके जोर-जोर से रितेश को आवाज देते हुए ढूंढते है। करण एक पेड़ के नीचे चला जाता है उसके ऊपर कुछ टप से गिरता है, यहां ओस गिरती रहती है यह सोचकर उसने कुछ नही किया। अगली बून्द उसके कान पर गिरी वह अपने हाथ से पोछ देता है मगर यह क्या उसके हाथों में खून लगा हुआ था वह जोर से चीखा।

"क्या हुआ करण!" सब उसकी ओर भागे परन्तु जब वे सभी यहां पहुंचे तो करण भी वहां नही था।

"ये क्या हो रहा है सर?" एक गॉर्ड पूछने की कोशिश करता है।

"यह जंगल मेरे लिए भी नया है सुल्तान! खान आपको क्या लगता है, न जाने क्यों मुझे हर तरफ मनहूसियत की बू आ रही है।" शुभ काफी परेशान नजर आ रहा था।

"नही सर! ऐसा तो…" इससे पहले खान अपनी बात पूरी कर पाता उसके कंधे पर एक बूंद गिरती है, वह ऊपर देखता है और हैरान रह जाता है। डर के मारे उसकी जोरो की चीख निकल जाती है।

"क्या हुआ खान साहेब?" अजय दौड़ता हुआ आया पर अब खान भी गायब हो चुका था।

"यह तो अभी अभी ही हमारे पास था अब कहाँ चल गया?" शुभ का चेहरा तमतमा उठा था। "देखो हमारे साथ कोई मजाक मत करो हम आलरेडी एक मिशन पर हैं।"

"सर!" सुल्तान डर के मारे चीखा, उसने पेड़ पर रखी उस चीज को देख लिया था।

"क्या हुआ सुल्तान!" सभी गॉर्ड उसके पास पहुँचे। सुल्तान के मुँह से आवाज नही निकल पा रही थी वो उंगलियों से ऊपर देखने का इशारा करता है।

बुरी तरह कटी-हुई रितेश की क्षत-विक्षत लाश के टुकड़े! जो आसपास के कई पेड़ो पर टाँगकर लटकाया गया था। किसी ने बड़ी निर्ममता और क्रूरता से उसकी हत्या कर दी और टुकड़ो को पेड़ पर लटका दिया पर ऐसा करने में काफी समय हो जाएगा, रितेश के गायब होने और अब में इतना वक़्त नही गुजरा है की कोई आसानी से ये सब कर सके। शुभ के मन में कई सवाल घुमड़ रहे थे।

"सर वहां से हटिये!" अचानक अजय जोर से चीखते हुए शुभ और सुल्तान को एक ओर गिरा देता है। थोड़ी ही दूर पर एक और क्षत विक्षत लाश पड़ी हुई थी। उसे भी बड़े रहस्यमय तरीके से मारा गया था, आँखे बाहर निकली हुई थी, मुँह से खून निकला हुआ था और पूरे शरीर की त्वचा ताजी लाश से ही उतार ली गयी थी। ये हड्डियों और अंतड़ियों का ढांचा मांस के लोथड़ों के रूप में बहुत ही डरावना लग रहा था यह देखकर एक पल को उन सभी की सांसें रुक गयी।

"यहां से भागो।" शुभ चिल्लाया।

सब तेजी दौड़ने लगे, अचानक एक गॉर्ड किसी चीज से टकराया। वह करण का सिर था जिससे आंखे नोच ली गयी थी।

"हे राम!" वह गॉर्ड डर के मारे वही जड़ हो जाता है।

"भागो अजीत!" शुभ चिल्लाता है पर अजीत के कदम जैसे वही से बन्ध गए हो। वह बेचारा लाख कोशिशों के बाद भी वहां से आगे नही बढ़ पा रहा था।

"बहुत जी चुके हो तुम सब, अब मृत्यु का स्वागत करो।" वातावरण में एक रहस्यमय स्वर उभरा।

"कौन हो तुम?" शुभ पूछता है, पर कोई जवाब नही आता।

अजीत वहां से भागने की कोशिश करता है तभी वह करण के हाथ के टुकड़े से टकरा जाता है, डर के मारे उसका कलेजा मानो हलक में अटक गया हो वह चाहकर भी कुछ नही कर पा रहा था।

"सब भागो।" शुभ चीखते हुए चिल्लाया, यह देखकर उसकी रूह भी सर्द हो चुकी थी। पर अजीत अब चाहकर भी कदम नही बढ़ा सकता था। अचानक से एक बेल हिली, वह अपनी पकड़ से पेड़ को मुक्त करने लगी अजीत की आँखे यह देखकर पथरा जा रही थी। वह बेल अजीत की ओर कमान से छूटे तीर की भांति बढ़ी, अजय उसे बचाने के लिए दौड़ा, जोर का धक्का देकर उसे बचा लिया पर बेल उसके गर्दन में धँस गई थी। अगले ही पल उसने अजय को ऊपर से नीचे तक हड्डियों सहित चीर दिया, उसकी चीख वातावरण में गूंज गयी। यह दृश्य इतना वीभत्स था कि अब किसी में अपनी जगह। से हिलने की हिम्मत न हो रही थी। सभी की एक एक सांस लेने में हिम्मत टूटती जा। रही थी। पर अजय के शरीर पर अत्याचार अभी समाप्त नही हुआ था, शरीर के गिरने से पहले ही उस बेल ने उसके दोनों टुकड़ो को आलू की भांति काटकर अनेको छोटे छोटे टुकड़े बना दिये। अजीत जमीन पर फिसलते हुए भागने की कोशिश करने लगा, उस बेल ने उसका पैर पकड़कर लटका दिया, शुभ अपनी गन निकालकर बेल पर फायर करता है परन्तु सारी की सारी गोलियां खाली हो जाने पर भी उसे एक खरोंच तक नही आई। बेल अजीत को जमीन पर पटककर फिर ऊपर उठाती है, डर के मारे अजीत चीखता चिल्लाता हुआ अपने इष्ट से प्रार्थना करने लगता है। बेल उसे पेड़ के तने पर पटकती है, अजीत का मुंह बुरी तरह टूट जाता है। दर्द और डर के कारण अजीत को हार्टअटैक आ गया उसकी साँसे रुकने लगी तभी एक दूसरी बेल आकर उसके सीने को आर-पार भेद देती है, अब उसका दिल पूरी तरह धड़कना छोड़ चुका था। वह बेल उसके सीने से उसका पंजर निकाल लेती है, वातावरण में अजीब सी महक फैल गयी थी अब किसी में हिम्मत न थी, उनकी साँसे खुद ही ठहरने लगी।

अचानक जंगल जी उठा, वह रक्त का प्यासा हो गया, घासों ने उन जंगल के रक्षको के पैर बांध लिए पेड़ो की शाखाएं और बेले किसी धारदार हथियार की भांति उनके जिस्म के परखच्चे उड़ाती गयी। अब यहां फैले जिस्म के लोथड़ों और उनकी चीखों के अलावा कुछ शेष न था। अंतड़िया ऐसे बाहर निकली हुई थी, आँखे कोटरों के बाहर झूल रही थी। जिस्म को सब्जियों के भांति हजारों टुकड़ो में काट दिया गया था, जंगल का यह भयानक रूप आजतक किसी ने नही देखा होगा और जिसने भी देखा होगा वह कभी जीवित नही लौटा होगा।

"अब उसका आना तय है क्योंकि वह घर में प्रवेश अवश्य ही करेगा.. हाहाहा…!" वातावरण में वही रहस्यमय स्वर गूंजा। सभी के कटे-फ़टे तड़पते जिस्म शांत हो गए, उनके टुकड़ो को घासों और पेड़ो ने गायब कर दिया अब यह जंगल पहले की भांति शांत था जैसे यहां कभी कुछ हुआ ही नही।

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अमन और उसके साथी उस किले से थोड़ी दूर नदी के किनारे पर विश्राम करते हुए आपस में बातें कर रहे थे। जय और आँसू अब भी चुप थे, विस्तार ज्यादा कुछ नही बोल रहा था पर केशव और अमित की बकबकी लगी हुई थी।

"तो आप लोगो की क्या इच्छा है?" केशव व्यंग्यात्मक तरीके से पूछता है।

"मतलब!" अमन घूरते हुए बोला।

"मतलब अगर ये किला पसन्द आएगा तो हमको दे देंगे क्या!" अमित बोला। "मतलब आपके पास तो पहिले से ही कई किले-मकान हैं।"

"हाँ-हाँ तुम दोनों को ही दे देंगे वैसे भी हम यहां इस जंगल मे बसने नही आये हैं।" शिवि बोलती है।

"काश कि बस जाते!" आँसू धीमे स्वर में बोली।

"देखो भाईलोग पहले किला देख लेते हैं फिर आगे का सोचेंगे।" अमन अपने दोनों हाथ लहराते हुए बोला। वे सभी आगे बढ़ते हैं अब विस्तार आगे आगे चल रहा था बाकी सब उसके अगल बगल में।

"यार यह किला तो काले पत्थरों से ही बना है और इसकी नक्कासी देखो।" अमन आश्चर्य से बोला "वाओ! शानदार है..!"

"चलो न अंदर चल के देखते हैं।" शिल्पी कहती है।

"नही! क्या तुम सबको नही लगता कि ऐसे अंदर जाना खतरनाक हो सकता है?" विस्तार मना करता है।

"मैं भी विस्तार के बात से सहमत हूँ।" जय बोला।

"फिर मैं भी।" शिल्पी अपना सिर पकड़कर चिढ़े हुए बोलती है। उसके खूबसूरत नैन-नक्श सिकुड़कर टमाटर की भांति हो जाते है। "पता नही किस खड़ूस से दोस्ती कर ली है हर बात पे नखरे!"

"ठीक है दोस्तों! पर पहले मैं जाऊंगा बाद में तुम सब।" विस्तार बोलता है तो इसपर सब हामी भर देते हैं।

चलते चलते वे शीघ्र ही उस पतली पट्टी पर पहुँच जाते हैं जो किले को अलग द्वीप बनने से रोकता है। नदी द्वारा निर्मित यह चिन्ह ओमेगा की भांति था जो किले को चारों ओर से घेरे हुए था। मात्र यही एक रास्ता था जिससे चलकर जाया जा सके। विस्तार अंदर चला जाता है बाकी सब थोड़ा पीछे रुकते हैं। विस्तार के जाते ही किले का दरवाजा खुलने लगता है मानो उसका इंतजार कर रहे हों। काफी देर तक जब विस्तार की खबर नही मिलती तो वे सब अंदर जाने की कोशिश करते हैं पर लाख कोशिशों के बावजूद नही जा पाते। विस्तार अब तक किले में प्रवेश कर चुका था।

"हमारी दुनिया में तुम्हारा स्वागत है ब्रह्मेश!" किले की दीवारों से रहस्यमय स्वर उभरा। विस्तार हैरान होकर दीवार को देखता हुआ आगे बढ़ने लगा।

क्रमशः….


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6 Comments

Kaushalya Rani

25-Nov-2021 10:06 PM

Well penned

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Farhat

25-Nov-2021 06:29 PM

Good

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Niraj Pandey

03-Jul-2021 05:34 PM

बहुत खूब 👌

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Shukriya

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